कैसा प्रेम है यह
कैसा प्रेम है यह
कि मन मेरा भरता नहीं
हर समय जो तेरे समीप गुजरा
वो नजरों से हटता नहीं
जाऊं कहीं भी मैं भले
मन मेरा लगता नहीं
साथ रहने का स्वप्न
आंखों से बिछड़ता नहीं
कि सांत्वना भी देता है
पर पीड़ा भी गंभीर
हृदय प्रफ्फुलित भी करता
और भरता नयन में नीर।
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